ट्रांसफार्मर: परिभाषा और कार्य सिद्धांत
Electricity की उत्पत्ति के बाद से ही लोगों ने इसका पूरी तरह से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, और यह कारण है कि इसके फायदे बहुत सारे हैं। विद्युत को उत्पन्न होने के बाद से लेकर उसे फैलाने की प्रक्रिया में Transformer ने एक अहम भूमिका निभाई है।
हमारे आसपास बहुत से प्रकार के Transformer देखने को मिलते हैं। कुछ के आकार बहुत छोटे होते हैं तब कुछ के आकार बहुत बड़े होते हैं। इन्हें इनके उपयोग के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है। बहुत से लोग ट्रांसफार्मर देखते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि यह किस काम में लगते हैं।
ट्रांसफार्मर की संरचना एक दृष्टि में जैसे एक दैत्य जैसी दिखती है, लेकिन इसकी उपयोगिता के विषय में जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है। अगर आपको इन मशीनों के बारे में कुछ भी नहीं पता है, तो आज का यह लेख ट्रांसफार्मर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेगा, जिससे आप इसे सही तरीके से समझ पाएं।
ट्रांसफार्मर एक ऐसा उपकरण है जो इलेक्ट्रिकल ऊर्जा को एक सर्किट से दूसरे में मार्गांकन करता है, और यह सभी कार्रवाइयों को एक चुम्बकीय क्षेत्र के माध्यम से बिना किसी फ़्रीक्वेंसी के परिवर्तन के करता है। इसके प्राथमिक वाइंडिंग को प्राथमिक वाइंडिंग कहा जाता है, जो विद्युत स्रोत से विद्युत ऊर्जा को प्राप्त करता है, और दूसरे सर्किट को जिससे विद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है, को सेकंडरी वाइंडिंग कहा जाता है।
आपकी जानकारी सही है कि इलेक्ट्रिक ट्रांसफार्मर का आविष्कार विलियम स्टेनले द्वारा 1885 में किया गया था। ट्रांसफार्मर के उपाय को लेकर कई वैज्ञानिकों की योगदान रहा है, जिसमें माइकल फैराडे भी शामिल हैं। फैराडे ने 1831 में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंद्रधनुष का पहला प्रदर्शन किया था, जो कि ट्रांसफार्मर के विकास में महत्वपूर्ण था। यह एक अभिन्न भूमिका नहीं हो सकती है कि विभिन्न वैज्ञानिकों ने इस प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान दिया है।
ट्रांसफार्मर एक विद्युत उपकरण है जो इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक प्रणाली का उपयोग करके वोल्टेज और करंट को एक स्तर से दूसरे स्तर पर बदलता है। इसके प्रमुख कार्य विद्युत ऊर्जा को परिवर्तित करना है और यह विभिन्न विद्युत उपकरणों में ऊर्जा के गंभीर नुकसान के बिना ऊर्जा को बदलता है।
ट्रांसफार्मर का मुख्य भाग
दो प्राथमिक और सेकेंडरी कोइल होता है, जो एक कागजी या विद्युतीय कार्बन के कोर पर रखे जाते हैं। प्राथमिक कोइल में इलेक्ट्रिकल ऊर्जा के धारावाहिक कारंट को एक स्तर से प्रेरित किया जाता है, जिससे एक मैग्नेटिक फ़ील्ड उत्पन्न होता है। यह मैग्नेटिक फ़ील्ड सेकेंडरी कोइल में इलेक्ट्रिकल ऊर्जा के धारावाहिक कारंट को उत्पन्न करता है, जिससे उस विद्युत उपकरण को चलाने के लिए आवश्यक वोल्टेज और करंट प्राप्त होता है।
ट्रांसफार्मर के द्वारा वोल्टेज और करंट को बदलने की प्रक्रिया स्थिर और सुचारू रहती है, जो की विद्युत उपकरणों को सुरक्षित और उपयोगी बनाता है। इसके अतिरिक्त, ट्रांसफार्मर बिना किसी मेकेनिकल पार्ट के होता है, जिससे इसका उपयोग विभिन्न उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक सुगम होता है।
ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है?
ट्रांसफार्मर का कार्य इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन के सिद्धांत पर आधारित होता है। इस सिद्धांत को “फाराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण” कहा जाता है।
इस सिद्धांत के अनुसार, एक विद्युत धारित तार के आसपास जब विद्युत चुम्बकीय फ्लक्स की परिवर्तन घटित होती है, तो उसमें विद्युत धारितता पैदा होती है। यह फ्लक्स की परिवर्तन विद्युत चुम्बक के साथ उसके आसपास के तार में विद्युत धारितता उत्पन्न करता है।
ट्रांसफार्मर में, एक प्राथमिक और एक गोपनीय कुंजी तार से बना होता है, जिनके बीच फ्लक्स में परिवर्तन होता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, ट्रांसफार्मर एक धारक की विद्युत ऊर्जा को एक तार के साथ से दूसरे तार में परिवर्तित करता है, लेकिन यह ऊर्जा का मात्रा या वोल्टेज को बदलता नहीं है।
ट्रांसफार्मर की संरचना
ट्रांसफार्मर का निर्माण तीन मुख्य भागों से होता है: प्राथमिक वाइंडिंग, चुंबकीय कोर, और द्वितीय वाइंडिंग।
प्राथमिक वाइंडिंग:
प्राथमिक वाइंडिंग वह वायरिंग होती है जिसे इलेक्ट्रिकल स्रोत से जोड़ा जाता है। यह वाइंडिंग चुंबकीय फ्लक्स (magnetic flux) को उत्पन्न करती है जब इसे इलेक्ट्रिक स्रोत के साथ कनेक्ट किया जाता है।
चुंबकीय कोर:
चुंबकीय कोर प्राथमिक वाइंडिंग में उत्पन्न होने वाले चुंबकीय फ्लक्स को पास करता है। यह चुंबकीय कोर प्राथमिक और द्वितीय वाइंडिंग के बीच लिंक किया गया होता है और एक सीलबंद चुंबकीय परिपथ (closed magnetic circuit) बनाता है।
द्वितीय वाइंडिंग:
द्वितीय वाइंडिंग चुंबकीय कोर के माध्यम से गुजरने वाले चुंबकीय फ्लक्स को पास करती है और इसे इलेक्ट्रिकल लोड को डिलिवर करती है। यह वाइंडिंग भी चुंबकीय कोर में लपेटी जाती है और ट्रांसफार्मर की उत्पादन को संभालती है।
ध्यान देने योग्य है कि ट्रांसफार्मर इलेक्ट्रिकल ऊर्जा का उत्पादन नहीं करता है, बल्कि यह इलेक्ट्रिकल ऊर्जा को एक एसी सर्किट से दूसरे में बिना किसी फ़्रीक्वेंसी परिवर्तन के मार्गांकन करता है, चुंबकीय कप्लिंग का उपयोग करके।
ट्रांसफार्मर का निर्माण
ट्रांसफार्मर की संरचना में तीन मुख्य घटक होते हैं: प्राथमिक वाइंडिंग, चुंबकीय कोर, और द्वितीय वाइंडिंग।
प्राथमिक वाइंडिंग:
प्राथमिक वाइंडिंग एक तार की गिरफ्त में होती है जो इलेक्ट्रिकल स्रोत से जुड़ी होती है। यह वाइंडिंग मैग्नेटिक फ़्लक्स (चुंबकीय फ़्लक्स) को उत्पन्न करती है जब इसे इलेक्ट्रिक स्रोत के साथ कनेक्ट किया जाता है।
चुंबकीय कोर:
चुंबकीय कोर प्राथमिक वाइंडिंग में उत्पन्न होने वाले मैग्नेटिक फ़्लक्स को पास करता है। यह चुंबकीय कोर प्राथमिक और द्वितीय वाइंडिंग के बीच लिंक किया जाता है और एक सीलबंद चुंबकीय परिपथ (बंद मैग्नेटिक सर्किट) बनाता है।
द्वितीय वाइंडिंग:
द्वितीय वाइंडिंग चुंबकीय कोर के माध्यम से गुजरने वाले मैग्नेटिक फ़्लक्स को पास करती है और इसे इलेक्ट्रिकल लोड को डिलिवर करती है। यह वाइंडिंग भी चुंबकीय कोर में लपेटी जाती है और ट्रांसफार्मर की उत्पादन को संभालती है।
याद रखने योग्य है कि ट्रांसफार्मर इलेक्ट्रिकल ऊर्जा का उत्पादन नहीं करता है, बल्कि यह इलेक्ट्रिकल ऊर्जा को एक एसी सर्किट से दूसरे में बिना किसी फ़्रीक्वेंसी परिवर्तन के मार्गांकन करता है, चुंबकीय कप्लिंग का उपयोग करके।
एक ट्रांसफार्मर के चार मुख्य भाग होते हैं। ये भाग निम्नलिखित होते हैं:
इनपुट कनेक्शन (Input Connections):
ट्रांसफार्मर का इनपुट साइड को प्राइमरी साइड भी कहा जाता है क्योंकि मुख्य विद्युत ऊर्जा इसी बिंदु से प्राप्त होती है जहाँ से विद्युत ऊर्जा का परिवर्तन होता है।
आउटपुट कनेक्शन (Output Connections):
ट्रांसफार्मर का आउटपुट साइड या सेकेंडरी साइड वह भाग होता है जहाँ से विद्युत ऊर्जा को उपभोक्ता को भेजा जाता है। उपभोक्ता की आवश्यकताओं के अनुसार, आने वाली विद्युत ऊर्जा को या बढ़ाया जाता है या घटाया जाता है।
वाइंडिंग (Windings):
ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग होती हैं, एक प्राइमरी वाइंडिंग और दूसरी सेकेंडरी वाइंडिंग। प्राइमरी वाइंडिंग एक कोइल होती है जो स्रोत से विद्युत ऊर्जा खींचती है। सेकेंडरी वाइंडिंग एक कोइल होती है जो ऊर्जा को उपभोक्ता को प्रेषित करती है, और उसे परिवर्तित वोल्टेज में भेजती है।
कोर (Core):
ट्रांसफार्मर कोर का उपयोग एक नियंत्रित पथ प्रदान करने के लिए होता है जिसमें चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न होता है जो कि ट्रांसफार्मर में उत्पन्न होता है। यह कोर आमतौर पर किसी एक सॉलिड स्टील बार की तरह नहीं होता है, बल्कि यह एक समूह होता है जिसमें कई पतले लेमिनेटेड स्टील शीट्स या परतें होती हैं। इसका उद्देश्य है हीटिंग को कम या पूरी तरह से निष्क्रिय करना।
ट्रांसफार्मर में आमतौर पर दो प्रकार के कोर होते हैं:
कोर टाइप और शैल टाइप। कोर टाइप में, वाइंडिंग को लेमिनेटेड कोर से घेरा जाता है, जबकि शैल टाइप में, वाइंडिंग को लेमिनेटेड कोर से घेरा जाता है।
ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत बहुत ही सरल है। इसमें म्यूचुअल इंडक्शन (Mutual Induction) का उपयोग होता है। यहाँ, एक तार की विद्युत ऊर्जा को दूसरे तार में ट्रांसफर किया जाता है, जिससे वोल्टेज या करंट का स्तर बदलता है।
ट्रांसफार्मर में दो कोइल होती हैं –
प्राथमिक कोइल और सेकेंडरी कोइल।
प्राथमिक कोइल में एक बदलता हुआ विद्युत धारावाहिक करंट पास किया जाता है, जिससे एक मेग्नेटिक फील्ड उत्पन्न होता है। यह मेग्नेटिक फील्ड सेकेंडरी कोइल को भी affect करता है, जिससे उसमें एक विद्युत धारावाहिक इम्पीडेंस उत्पन्न होता है।
फैराडे के विद्युत इंडक्शन के कानून के अनुसार, इस विद्युत धारावाहिक इम्पीडेंस के कारण सेकेंडरी कोइल में एक विद्युत धारावाहिक विपरीत एमएफ उत्पन्न होता है। जब सेकेंडरी कोइल का सर्किट बंद होता है, तो इस विपरीत एमएफ के कारण उसमें एक विद्युत धारावाहिक विपरीत एमएफ उत्पन्न होता है, जिससे सेकेंडरी कोइल में एक विद्युत धारावाहिक करंट उत्पन्न होता है।
इस प्रकार, प्राथमिक कोइल में दिए गए इनपुट का वोल्टेज या करंट, सेकेंडरी कोइल में एक अलग विद्युत वाहक के रूप में परिणामित होता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा का कोई हानि नहीं होती है, क्योंकि ट्रांसफार्मर केवल विद्युत ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित करता है, बिना उसे किसी अन्य रूप में बदलने की कोशिश किए।
यहाँ ट्रांसफार्मर की कार्यप्रणाली का सिद्धांत समझाया गया है। जब प्राथमिक कोइल में एक बदलता हुआ विद्युत धारावाहिक करंट दिया जाता है, तो उसके द्वारा उत्पन्न किया गया मैग्नेटिक फील्ड सेकेंडरी कोइल में भी एक विद्युत धारावाहिक इम्पीडेंस उत्पन्न करता है। इस प्रकार, सेकेंडरी कोइल में एक विद्युत धारावाहिक विपरीत एमएफ उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप उसमें एक विद्युत धारावाहिक करंट उत्पन्न होता है। इस प्रक्रिया में, ऊर्जा का कोई भी हानि नहीं होती है, क्योंकि ट्रांसफार्मर केवल विद्युत ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित करता है, बिना उसे किसी अन्य रूप में बदलने की कोशिश किए।
Step-Up ट्रांसफार्मर उन ट्रांसफार्मर्स को कहा जाता है जो primary winding से secondary winding के बीच voltage को बढ़ाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य है कम voltage को उच्च voltage में बदलना। यहां, primary winding में कम turns होते हैं जबकि secondary winding में अधिक turns होते हैं, जो की वोल्टेज को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
Step-Down ट्रांसफार्मर उन ट्रांसफार्मर्स को कहा जाता है जो primary winding से secondary winding के बीच voltage को कम करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य है उच्च voltage को कम voltage में बदलना। यहां, primary winding में अधिक turns होते हैं जबकि secondary winding में कम turns होते हैं, जो की वोल्टेज को कम करने में सहायक होते हैं।
ट्रांसफार्मर को Static Device इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें कोई भी चलता हुआ हिस्सा नहीं होता है। यह एक ऐसी डिवाइस है जो केवल इलेक्ट्रिकल ऊर्जा को एक circuit से दूसरे में बदलता है लेकिन किसी भी प्रकार का मूविंग पार्ट नहीं होता है। इसकी वजह से यह Static Device के रूप में जाना जाता है। इसका परिणामस्वरूप, यह अन्य इलेक्ट्रिकल मशीनों की तुलना में काफी अधिक दक्षता और प्रभावकारी होता है, और इसकी कार्यक्षमता का अनुमानित प्रतिशत 99% तक होता है।
ट्रांसफार्मर की आवश्यकता
ट्रांसफार्मर विद्युत शक्ति प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चाहे यह विद्युत उत्पादन, प्रेषण या वितरण हो, ट्रांसफार्मर की आवश्यकता होती है।
विद्युत ऊर्जा जनरेट की जाती है एक एल्टर्नेटर द्वारा, जो कि 11 kV, 16.5 kV या 21.5 kV में हो सकती है। फिर यह ऊर्जा आगे प्रेषित की जाती है लोड सेंटर तक। इसके लिए, ऊर्जा को उच्च वोल्टेज स्तर में उत्पन्न किया जाता है ताकि प्रेषण हानियां कम हों।
मान लें कि ऊर्जा 16.5 kV में उत्पन्न होती है और इसे 220 kV ग्रिड में प्रेषित किया जाना है। इस कार्य के लिए, 16.5 kV / 220 kV स्टेप-अप ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है।
फिर, लोड सेंटर में, वोल्टेज को 33 kV में कम किया जाता है, इसके लिए 220 / 33 kV स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है। इसके बाद, 33 kV / 11 kV और अंत में 11 kV / 415 V स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर का उपयोग हमारे घरों और व्यापारिक स्थानों में विद्युत वितरण के लिए किया जाता है।
साथ ही, इन्हें इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में विभिन्न उद्देश्यों के लिए अलाग-अलाग आकारों में तैयार किया जाता है। इसलिए, ट्रांसफार्मर का महत्व और आवश्यकता व्यापक है, और इसके बिना विद्युत प्रणाली का सहज चालन संभव नहीं होता।
Transformers का महत्व विद्युत के क्षेत्र में बहुत अधिक होता है। यहां नीचे इसके महत्वपूर्ण कारणों को विस्तार से समझाया गया है:
AC Supply का उपयोग: जब विद्युत की आवश्यकता होती है, तो उसका उपयोग AC फॉर्म में किया जाता है। Transformer असल में AC supply के साथ काम करने में सक्षम होता है।
- विद्युत ऊर्जा के प्रबंधन: ट्रांसफार्मर विद्युत ऊर्जा के उत्पादन, संचारण, वितरण, और उपयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दक्षता: Transformers (पावर और वितरण) की कार्यक्षमता करीब 95% से भी अधिक होती है, जिससे हम ऊर्जा को अधिक सहज और एफिशियंट रूप से संचारित कर सकते हैं।
- Voltage का नियंत्रण: ट्रांसफार्मर विद्युत ऊर्जा को एक वोल्टेज स्तर से दूसरे वोल्टेज स्तर में बदलने में सहायक होता है। यह ऊर्जा को step-up या step-down कर सकता है, जो विभिन्न उपयोगों के लिए उपयुक्त होता है।
- ऊर्जा का पुन: चक्रवात: Transformer के माध्यम से ऊर्जा को बड़ी दूरी तक ट्रांसमिट किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा का पुन: चक्रवात सुनिश्चित होता है।
- विशेष उपयोग: Transformers के विभिन्न प्रकारों का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि उत्पादन, वितरण, और उपयोग से लेकर औद्योगिक और नागरिक उपयोग तक।
- निर्देशन स्थलों में विनियमन: Transformer का उपयोग विद्युत प्रणाली के कुछ चरणों में isolation के लिए भी किया जाता है,
ट्रांसफार्मर बनाने की विधि में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
- मैग्नेटिक सर्किट: ट्रांसफार्मर का मैग्नेटिक सर्किट कोर, लिम्ब्स, योक, और डैम्पिंग स्ट्रक्चर से बनता है। यह सर्किट कोर के आसपास से गुजरने वाली मैग्नेटिक फ़्लक्स को प्रभावित करता है।
- इलेक्ट्रिकल सर्किट: ट्रांसफार्मर का इलेक्ट्रिकल सर्किट प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग्स से बनता है। प्राथमिक वाइंडिंग इनपुट स्त्रोत से संबंधित होता है, जबकि द्वितीयक वाइंडिंग आउटपुट स्त्रोत के साथ संबंधित होता है।
- डाईइलेक्ट्रिक सर्किट: ट्रांसफार्मर में डाईइलेक्ट्रिक सर्किट इंसुलेशन को संदर्भित करता है। यह सर्किट अलग-अलग रूपों में उपलब्ध इंसुलेशन का उपयोग करता है और इसका उपयोग विभिन्न स्थानों में किया जाता है।
- टैंक और सहायक उपकरण: ट्रांसफार्मर के लिए टैंक और अन्य सहायक उपकरण जैसे कि कंसर्वेटर, ब्रीथर, बुशिंग्स, कूलिंग ट्यूब्स आदि महत्वपूर्ण होते हैं। ये उपकरण ट्रांसफार्मर को सही रूप से चलाने में मदद करते हैं और इसकी सुरक्षा और प्रदर्शन को बढ़ाते हैं।
इन चरणों को ध्यान में रखते हुए, ट्रांसफार्मर बनाने की विधि को विस्तृत रूप से समझाया जा सकता है।
ट्रांसफार्मर के महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
- वोल्टेज स्तर का परिवर्तन (Voltage Level Conversion): ट्रांसफार्मर का मुख्य कार्य है वोल्टेज स्तर को बढ़ाना या घटाना। यह एक circuit से दूसरे circuit में विद्युत ऊर्जा को ट्रांसफर करने के लिए इस्तेमाल होता है। जबकि “स्टेप-अप” ट्रांसफार्मर ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने के लिए होता है, तो “स्टेप-डाउन” ट्रांसफार्मर ऊर्जा के स्तर को कम करने के लिए होता है।
- विद्युत प्रवाह को मैच करना (Matching Electrical Impedance): ट्रांसफार्मर का उपयोग स्रोत और लोड के इम्पेडेंस को मैच करने के लिए किया जाता है। इससे प्राप्त पावर को प्राप्त करने की अधिकतम संभावना होती है।
- आइसोलेशन (Isolation): ट्रांसफार्मर का उपयोग एक सर्किट को दूसरे से अलग करने के लिए किया जाता है, जिससे इस सर्किट को इलेक्ट्रिकली अलग किया जा सकता है। इस तरह के ट्रांसफार्मर को “आइसोलेशन ट्रांसफार्मर” कहा जाता है। इसमें, प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग की संख्या समान होती है, जिससे वोल्टेज स्तर में कोई भी बदलाव नहीं होता, लेकिन यह दोनों सर्किट को इलेक्ट्रिकली अलग करता है। इसके फलस्वरूप, दोनों सर्किट्स के बीच कोई वोल्टेज उत्पन्न नहीं होती, लेकिन वे इलेक्ट्रिकली आलाग होते हैं।
- ट्रांसफार्मर की रेटिंग (Rating) उसकी क्षमता या प्रदर्शन को निर्दिष्ट करती है, जिससे इसे सही तरीके से उपयोग किया जा सके। ट्रांसफार्मर की रेटिंग उसकी तीन प्रमुख पहचान होती हैं:
- रेटेड पावर (Rated Power): यह पावर ट्रांसफार्मर की क्षमता को दर्शाता है और इसे किलोवॉल्ट-एम्पीयर्स (kVA) में मापा जाता है। रेटेड पावर दो अंगों से निर्धारित किया जाता है – प्राथमिक और सेकेंडरी साइड के वोल्टेज और करंट के आधार पर।
- रेटेड वोल्टेज (Rated Voltage): यह उस वोल्टेज को दर्शाता है जिस पर ट्रांसफार्मर को सही तरीके से चालित किया जाना चाहिए। यह प्राथमिक और सेकेंडरी साइड दोनों के लिए निर्दिष्ट किया जाता है।
- रेटेड फ्रीक्वेंसी (Rated Frequency): यह ट्रांसफार्मर के साथ संगत फ्रीक्वेंसी को दर्शाता है। यह आमतौर पर हर्ट्ज (Hz) में मापा जाता है।
ट्रांसफार्मर की रेटिंग के अलावा, नेमप्लेट पर अक्सर इसका उपयोग किया जाने वाला और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी दी जाती है, जैसे कि इसका मॉडल नंबर, मेन्युफैक्चरिंग कंपनी, वायरिंग डायग्राम, आदि।
यहाँ कुछ अन्य प्रमुख ट्रांसफार्मरों के प्रकार हैं:
- वितरण ट्रांसफार्मर (Distribution Transformer): ये ट्रांसफार्मर विद्युत संबंधित उपयोगों के लिए उपयुक्त होते हैं जैसे कि घरों और व्यावसायिक स्थानों में विद्युत वितरण के लिए।
- साकार ट्रांसफार्मर (Instrument Transformer): ये ट्रांसफार्मर विभिन्न तरल और गैर-तरल संबंधित उपयोगों के लिए उपयोगी होते हैं, जैसे कि साकार ट्रांसफार्मर और करंट ट्रांसफार्मर।
- पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential Transformer): ये विशेष रूप से उच्च वोल्टेज को मापने और नियंत्रित करने के लिए उपयोगी होते हैं।
- ऑटोट्रांसफार्मर (Autotransformer): ये ट्रांसफार्मर एक ही कोइल में दोनों प्राथमिक और सेकेंडरी विंडिंग का उपयोग करते हैं, जिससे उत्पन्न करेंट की मान को कम किया जा सकता है और इसके लिए प्राथमिक-सेकेंडरी संबंध द्वारा वोल्टेज को बदला जा सकता है।
- पॉवर ट्रांसफार्मर (Power Transformer): ये ट्रांसफार्मर बड़े आकार के उपयोग के लिए होते हैं, जैसे कि ऊर्जा वितरण और उत्पादन के लिए। इनके आकार बड़े होते हैं और उन्हें आमतौर पर उत्पादन की प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है।
ये कुछ प्रमुख ट्रांसफार्मरों के प्रकार हैं जो विद्युत प्रणालियों में उपयोग किए जाते हैं।
Winding arrangement दोनों types के transformers में अलग-अलग होता है।
- Air Core Transformer: Air core transformers में, primary और secondary windings को non-magnetic material के चारों ओर लपेटा जाता है। इससे यहाँ किसी magnetic core का उपयोग नहीं होता है।
- Iron Core Transformer: Iron core transformers में, primary और secondary windings को iron core के चारों ओर लपेटा जाता है। यह iron core flux linkage के लिए एक perfect path प्रदान करता है।
Winding arrangement उस प्रकार का होता है जिसमें flux को सही रूप से लपेटा जा सके और ट्रांसफार्मर की efficiency को बढ़ावा दे।
Autotransformer का उपयोग विभिन्न वोल्टेज स्तरों को उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, जबकि इसका वास्तविक विन्यास standard transformers से थोड़ा अलग होता है। इसमें, प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग एक ही कोइल में समाहित होती हैं, जिससे यह एक प्राथमिक तरीके से उसी धारा का उपयोग करता है।
इसकी मुख्यता यह है कि यह एक ही कोइल का उपयोग करता है, जो कि प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के रूप में काम करता है। प्राइमरी साइड पर कम वोल्टेज लेने के लिए, सेकेंडरी वाइंडिंग के अलग-अलग टैपिंग को चुना जा सकता है, जिससे विद्युत विक्रेता को चाहिए गए वोल्टेज स्तर प्राप्त हो सकता है।
इस तरह का विन्यास सामान्य ट्रांसफार्मरों से काफी अलग है, लेकिन इसका उपयोग कम वोल्टेज के उत्पादन के लिए उपयोगी होता है, जो कि आम रूप से विभिन्न प्रयोजनों के लिए आवश्यक होता है, जैसे कि विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए।
यहाँ ट्रांसफार्मर की विभिन्न प्रकारों का उपयोग के आधार पर विस्तार से विवरण दिया गया है:
पावर ट्रांसफार्मर (Power Transformer):
- उपयोग: ऊर्जा उत्पादन स्थलों से ऊर्जा को ट्रांसमिशन स्थलों तक ले जाने के लिए।
- विशेषताएँ: बड़े आकार में होते हैं, उच्च वोल्टेज (33KV से अधिक) के पावर ट्रांसफार्मर का उपयोग होता है।
- उपकरण: पावर जनरेशन स्टेशन, ट्रांसमिशन सबस्टेशन।
वितरण ट्रांसफार्मर (Distribution Transformer):
- उपयोग: पावर जनरेशन स्टेशन से उत्पन्न हुई ऊर्जा को दूरस्थ स्थानों में वितरित करने के लिए।
- विशेषताएँ: कम वोल्टेज (करीब 33KV) में काम करते हैं, औद्योगिक और घरेलू उपयोग के लिए इस्तेमाल होते हैं।
- उपकरण: उद्योगिक इलेक्ट्रिकल नेटवर्क्स, घरेलू विद्युत नेटवर्क्स।
मापन ट्रांसफार्मर (Measuring Transformer):
- उपयोग: वोल्टेज, करंट, ऊर्जा आदि को मापने के लिए।
- विशेषताएँ: पॉटेंशियल ट्रांसफार्मर, करंट ट्रांसफार्मर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- उपकरण: मापन उपकरण, मापन संचालन सिस्टम।
संरक्षण ट्रांसफार्मर (Protection Transformer):
- उपयोग: इलेक्ट्रिकल संरक्षण के लिए।
- विशेषताएँ: संरक्षण ट्रांसफार्मर को अधिक शुद्धता और निखरता के साथ बनाया जाता है।
- उपकरण: सुरक्षा उपकरण, संरक्षण प्रणाली।
इन ट्रांसफार्मरों का उपयोग उनकी विशेष गुणवत्ताओं और अनुप्रयोगों के आधार पर किया जाता है
यह सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ हैं।
Indoor और Outdoor Transformers का उपयोग उनके संदर्भ के आधार पर किया जाता है, जैसे कि आपने उल्लेख किया।
और व्यावसायिक या गृह उपयोग के लिए Single-phase और Three-phase power supply का चयन भी उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं और आवश्यकताओं के आधार पर किया जाता है।
Cooling methods ट्रांसफार्मर की तापमान को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख cooling methods और उनकी विशेषताएं दी गई हैं:
- Air Natural (AN) or Self air cooled or Dry type: इस cooling method में, transformer को सामान्य हवा से ही ठंडा किया जाता है। यहाँ कोई cooling fan या pump का उपयोग नहीं होता है।
- Air Forced (AF) or Air Blast type: इसमें, हवा को high velocity से transformer के चारों ओर पास किया जाता है ताकि अधिक cooling हो सके।
- Oil Natural Air Natural (ONAN): इस cooling method में, transformer के ओइल को सामान्य हवा से ठंडा किया जाता है।
- Oil Natural Air Forced (ONAF): इसमें, ओइल को सामान्य हवा से ठंडा किया जाता है, लेकिन cooling को बढ़ाने के लिए एक cooling fan का उपयोग किया जाता है।
- Oil Forced Air Forced (OFAF): इस cooling method में, ओइल को forceful circulation करने के लिए एक pump का उपयोग किया जाता है, और फिर हवा से इसे ठंडा किया जाता है।
- Oil Natural Water Forced (ONWF): इसमें, ओइल को सामान्य हवा से ठंडा किया जाता है, लेकिन transformer के body को ठंडा करने के लिए water का भी इस्तेमाल किया जाता है।
- Oil Forced Water Forced (OFWF): इस cooling method में, ओइल को forceful circulation के लिए एक pump का उपयोग किया जाता है, और फिर ओइल को ठंडा करने के लिए water का भी उपयोग किया जाता है।
Step-Up और Step-Down Transformers के बीच कुछ मुख्य अंतर होते हैं:
- Voltage Level: Step-Up Transformer का output voltage source voltage से अधिक होता है, जबकि Step-Down Transformer में output voltage source voltage से कम होता है।
- Winding Configuration: Step-Up Transformer में, LV winding primary और HV winding secondary होती है, जबकि Step-Down Transformer में, HV winding primary होती है और LV winding secondary होती है।
- Voltage Change: Step-Up Transformer में, secondary voltage प्राथमिक voltage की तुलना में अधिक होती है, जबकि Step-Down Transformer में, secondary voltage प्राथमिक voltage की तुलना में कम होती है।
- Number of Turns: Step-Up Transformer में, primary winding की number of turns कम होती है secondary winding की तुलना में, जबकि Step-Down Transformer में, primary winding की number of turns अधिक होती है secondary winding की तुलना में।
- Current: Step-Up Transformer में, primary current सेकंडरी current से अधिक होती है, जबकि Step-Down Transformer में, secondary current प्राथमिक current से अधिक होती है।
- Application: Step-Up Transformer का उपयोग generally power transmission के लिए होता है, जबकि Step-Down Transformer का उपयोग power distribution के लिए होता है। उदाहरण के लिए, Generator Transformer एक Step-Up Transformer का उदाहरण है, जबकि transformer जो residential colony में इस्तेमाल होता है, वह एक बेहतरीन उदाहरण है Step-Down Transformer का।
Sr No. | Step-up Transformer | Step-down Transformer |
1) | Step-up transformer का output voltage ज्यादा होता है source voltage की तुलना में. | वहीँ Step-down transformer में output voltage कम होता है source voltage की तुलना में. |
2) | इसमें Transformer की LV winding primary और HV winding secondary होती है. | वहीँ transformer की HV winding primary होती है और LV winding होती है secondary. |
3) | Step-up Transformer की secondary voltage ज्यादा होती है primary voltage की तुलना में. | वहीँ Step-down Transformer में secondary voltage कम होती है primary voltage की तुलना में. |
4) | Primary Winding की number of turns कम होती है secondary winding की तुलना में. | वहीँ इसमें number of turns primary winding की ज्यादा होती है secondary winding की तुलना में. |
5) | Transformer की Primary current ज्यादा होती है secondary current से. | वहीँ इसमें Secondary current ज्यादा होती है primary current से. |
6) | Step-up transformer का इस्तमाल generally power transmission के लिए होता है. Generator Transformer जो की एक power plant में इस्तमाल होता है वो एक उदाहरण है Step-up Transformer की. | Step-down Transformer का इस्तमाल power distribution के लिए होता है. Transformer जो की इस्तमाल होता है residential colony में वो एक बढ़िया उदाहरण है step-down transformer का. |