भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश के सबसे उच्च न्यायिक संस्थान है और यह न्यायपालिका की सर्वोच्च अदालत है। यह न्यायिक संस्था भारतीय संविधान के अनुसार स्थापित की गई है और इसका मुख्य कार्य भारतीय संविधान के अनुसार न्याय की प्रदान करना है।
सर्वोच्च न्यायालय का प्रमुख कार्य भारतीय संविधान की धाराओं और कानूनों के अनुसार अपील और मामलों का सुनवाई करना है। इसे ‘सर्वोच्च’ कहा जाता है क्योंकि इसके निर्णयों को अंतिम और अधिकतम अधिकार स्वीकार किया जाता है और ये निर्णय भारतीय संविधान की सम्मति और गवाही में होते हैं।
यह न्यायालय नई दिल्ली के भवन में स्थित है। इसके जजों का नियुक्ति भारतीय राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अलावा कई और जज भी होते हैं, जिन्हें विभिन्न मामलों की सुनवाई के लिए नियुक्त किया जाता है।
इस रूप में, भारतीय संविधान की सभी अदालतों के बीच यह न्यायपालिका की सर्वोच्चता का स्थान है और यह न्यायिक संस्था देश के कानूनी और न्यायिक संरचना के लिए महत्वपूर्ण रूप से उत्तरदायी है।
भारत का सर्वोच्च न्यायालय कौन सा है?
भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश की सबसे ऊँची न्यायिक संस्था है। यह न्यायपालिका की सर्वोच्च अदालत है जो भारतीय संविधान के अनुसार स्थापित की गई है। सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य कार्य भारतीय संविधान के अनुसार न्याय की प्रदान करना है। यह न्यायालय भारत के सभी अदालतों के उच्चतम अदालत होता है और इसके निर्णयों को अंतिम और अधिकतम अधिकार स्वीकार किया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का नियुक्ति भारतीय राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इसमें मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश शामिल होते हैं। यहाँ तक कि इसमें पूरे देश के न्यायिक सिस्टम के निर्णयों को अंतिम रूप दिया जाता है, और इसके निर्णय देश के संविधान और कानूनों के साथ अविरोधी होते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। यहाँ पर सभी प्रमुख कानूनी मामलों की सुनवाई होती है, जिनमें राज्य सरकार, नागरिक, और सरकारी अदालतें शामिल होती हैं। यह न्यायालय देश के न्यायिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका काम न्यायिक विचारधारा और न्याय के प्रति समर्पितता को बनाए रखना है।
किसके अंतर्गत भारत में सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई?
भारत में सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और उसकी महत्वपूर्णता का समाधान करने के लिए, हमें इसके समय, परिस्थितियाँ, और प्रक्रिया को समझने की आवश्यकता है।
सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, एक नई न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता थी, जो स्वतंत्र भारत के संविधान के प्रारूप में स्थापित की गई। इस संविधान की प्रारंभिक धाराओं में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का विचार शामिल था।
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के समय, भारत की न्यायिक प्रणाली के विभिन्न पहलुओं का विचार किया गया। इसमें ब्रिटिश शासन के अधीनता के दौरान स्थापित न्यायिक संस्थाओं का भी समावेश था। सर्वोच्च न्यायालय की प्रारंभिक स्थापना से पहले, उच्चतम न्यायिक प्राधिकरण के रूप में कार्य किया जा रहा था, जिसमें प्राचीन और अन्य स्तरों के न्यायिक संस्थाएँ शामिल थीं।
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना से लेकर उसकी प्रारंभिक कार्यप्रणाली का विस्तार, न्यायिक प्रणाली के विभिन्न पहलुओं को समझने की आवश्यकता है। यह न्यायिक संस्था भारतीय संविधान के साथ तंत्रिक रूप से जुड़ी हुई है और इसका मुख्य कार्य न्याय की प्रदान करना है। इसके संविधान के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का अंतिम और अधिकतम अधिकार स्वीकार किया जाता है, और ये निर्णय देश की संविधान की सम्मति और गवाही में होते हैं।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कौन है?
वे अपनी शिक्षा की शुरुआत दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में करते हैं, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, वे दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से विधि स्नातक की उपाधि हासिल करते हैं, और बाद में विधि परास्नातक तथा एस.जे.डी. की उपाधि हार्वर्ड विधि स्कूल, संयुक्त राज्य अमेरिका से प्राप्त करते हैं।
वे वकालत की प्रवृत्ति बार काउंसिल, महाराष्ट्र में शुरू करते हैं और मुख्य रूप से बॉम्बे उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करते हैं। उन्हें 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता इसके अलावा उन्हें भारत के सॉलिसिटर जनरल के पद पर नियुक्त किया जाता है।
वे मुंबई विश्वविद्यालय में तुलनात्मक संवैधानिक विधि के अतिथि प्राध्यापक रहते हैं, और ओकलाहोमा विश्वविद्यालय स्कूल ऑफ लॉ, संयुक्त राज्य अमेरिका के भी अतिथि प्राध्यापक हैं।
उन्होंने अपने ज्ञान को विश्व भर में साझा किया है, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, हार्वर्ड विधि स्कूल, येल विधि स्कूल, और विटवाटर्सरैंड विश्वविद्यालय, दक्षिण अफ्रीका। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के संभागों में, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के उच्च आयोग, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व बैंक, और एशियन डेवलपमेंट बैंक द्वारा आयोजित सम्मेलनों में वक्ता के रूप में भाग लिया है।
29 मार्च 2000 को, उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के निदेशक के रूप में भी काम किया है।
31 अक्टूबर, 2013 में, उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में शपथ ली।
13 मई, 2016 को, उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उन्नयन किया।
9 नवंबर, 2022 को, उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
भारत का सर्वोच्च न्यायालय कब बना?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और उसका महत्व भारतीय संविधान के अंतर्गत आयोजित किया गया था। भारतीय संविधान, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, देश की आधिकारिक संविधानिक व्यवस्था को स्थापित करता है। इसके अंतर्गत, सर्वोच्च न्यायालय को भारतीय न्यायपालिका की सर्वोच्च अदालत के रूप में स्थापित किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतीय संविधान के उच्चतम मानकों के पालन और संरक्षण का सुनिश्चित करना है। इसका मुख्य कार्य न्याय की प्रदान करना है, और यह सभी मामलों में अंतिम न्याय देने का अधिकार रखता है।
सर्वोच्च न्यायालय के गठन के पीछे कई कारण हैं, जिनमें समान न्याय, न्यायिक अनुभव, और न्यायिक निर्णयों की अधिकतम संविधानिक नियामकता शामिल है। इसके बिना, न्यायिक प्रणाली में विश्वास और समर्थन की कमी हो सकती है, जिससे सामाजिक स्थिति और न्याय की भावना पर प्रभाव पड़ सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के गठन से लेकर उसकी प्रारंभिक कार्यप्रणाली के विस्तार तक, न्यायिक प्रणाली के विभिन्न पहलुओं को समझने की आवश्यकता है। यह न्यायालय भारत के न्यायिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका काम न्यायिक विचारधारा और न्याय के प्रति समर्पितता को बनाए रखना है।