इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग क्या है?

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) एक वित्तीय प्रक्रिया है जिसमें एक प्राइवेट कंपनी अपने स्टॉक को प्राइवेट स्वामित्व से सार्वजनिक स्वामित्व में बदलती है। यह प्रक्रिया कंपनी के शेयरों को सार्वजनिक बाजार में लाने का एक तरीका है, जिससे उसका स्टॉक वित्तीय बाजारों में ट्रेड किया जा सकता है।

यह प्रक्रिया कुछ चरणों में संपन्न होती है:

  1. पूर्व-आधारिक काम (Pre-IPO Activities): यह चरण कंपनी के द्वारा पूर्व-आधारिक तैयारी का है। इसमें कंपनी अपने वित्तीय और कानूनी दस्तावेज़ों की साफ-सुथरी करती है, वित्तीय नियंत्रण और अनुसंधान कार्यक्रमों को संभालती है, और बाजार संचारन की योजना बनाती है।
  2. आवेदन की प्रक्रिया (Application Process): इस चरण में, कंपनी एक IPO के लिए सेक्यूरिटीज़ और एक्सचेंज कमीशन (SEC) और अन्य प्राधिकरणों को एक आवेदन प्रस्तुत करती है। यह आवेदन वित्तीय और व्यावसायिक जानकारी के साथ आता है।
  3. मार्केटिंग और प्रसारण (Marketing and Promotion): IPO की घोषणा के बाद, कंपनी अपने शेयरों के बारे में जानकारी को सार्वजनिक बाजार में प्रसारित करती है। इसका उद्देश्य बाजार में रुचि पैदा करना और संभावित निवेशकों को आकर्षित करना होता है।
  4. ग्रीनशू का संपादन (Underwriting Process): IPO के लिए एक या अधिक वित्तीय संस्थाएं (ग्रीनशू) कंपनी को अपने शेयरों को बेचने में मदद करती हैं। ग्रीनशू कंपनी के लिए निर्धारित मूल्य के साथ शेयरों को खरीदती है और फिर बाजार में उन्हें बेचती है।
  5. खुलने की प्रक्रिया (Opening Process): IPO के दिन, कंपनी के शेयर बाजार में उपलब्ध होते हैं और लोग उन्हें खरीदने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस दौरान, शेयर की मूल्य निर्धारित होती है और लोगों को उनकी मांग के हिसाब से शेयर मिलते हैं।
  6. प्राइसिंग और अनुबंधित कार्यवाही (Pricing and Settlement): IPO के बाद, शेयरों की कीमत और वित्तीय व्यवहार निर्धारित किए जाते हैं। फिर, संबंधित दस्तावेज़ का निपटान किया जाता है और निवेशकों को उनके खरीदे गए शेयरों के लिए भुगतान किया जाता है।

इस प्रक्रिया के माध्यम से, कंपनी अपने शेयरों को सार्वजनिक बाजार में लाकर पूंजी जुटा सकती है और निवेशकों को अपने साथ संबद्ध कर सकती है। इसके साथ ही, यह एक महत्वपूर्ण वित्तीय प्रक्रिया है जो नई व्यावसायिक अवसरों को उत्पन्न कर सकती है और कंपनी के विकास के लिए पूंजी उपलब्ध करा सकती है।

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कब शुरू हुआ था?


इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) का प्रारंभिक रूप 1602 में हुआ था, जब डच इंडिया कंपनी, एस्ट इंडिया कंपनी, नीदरलैंड के अधीन एक ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में अपने स्टॉक का जनसामान्य में बाजारीकरण किया था। इसके बाद, अम्स्टर्डम बोर्स के माध्यम से अन्य कंपनियों ने भी IPO का लाभ उठाया। पश्चिमी विश्व में इस प्रकार का पहला संघर्षी IPO 1602 में होने के बावजूद, वित्तीय इतिहासकारों के अनुसार, IPO का सम्पूर्ण अर्थ केवल बर्लिन और फ्रैंकफर्ट की वित्तीय बाजारों के दिशा में हुआ था

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग का फुल फॉर्म क्या है?

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering) का पूरा फॉर्म है।

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering – IPO) एक वित्तीय प्रक्रिया है जिसमें एक प्राइवेट कंपनी अपने स्टॉक को सार्वजनिक बाजार में लाती है ताकि उसे सार्वजनिक स्वामित्व प्राप्त हो सके। इस प्रक्रिया में, कंपनी अपने शेयरों का सार्वजनिक बिक्री करती है और वित्तीय बाजार में इसके लिए पूंजी जुटाती है। इसके जरिए, कंपनी के शेयरों को सार्वजनिक निवेशकों के लिए उपलब्ध कराया जाता है।

इस प्रक्रिया की मुख्य चरणों में:

  1. पूर्वआधारिक कार्य (Pre-IPO Activities): कंपनी अपने वित्तीय और कानूनी दस्तावेज़ों को संपादित करती है, वित्तीय नियंत्रण और अनुसंधान कार्यक्रमों को संचालित करती है, और IPO की योजना बनाती है।
  2. आवेदन की प्रक्रिया (Application Process): कंपनी IPO के लिए आवेदन प्रस्तुत करती है और इसके लिए आवश्यक दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करती है।
  3. मार्केटिंग और प्रसारण (Marketing and Promotion): IPO की घोषणा के बाद, कंपनी अपने शेयरों के बारे में जानकारी को सार्वजनिक बाजार में प्रसारित करती है।
  4. ग्रीनशू का संपादन (Underwriting Process): ग्रीनशू कंपनी कंपनी के शेयरों की विपणन का काम करती है और शेयरों को बेचती है।
  5. खुलने की प्रक्रिया (Opening Process): IPO के दिन, कंपनी के शेयर बाजार में उपलब्ध होते हैं और लोग उन्हें खरीदने के लिए आवेदन कर सकते हैं।
  6. प्राइसिंग और अनुबंधित कार्यवाही (Pricing and Settlement): IPO के बाद, शेयरों की कीमत और वित्तीय व्यवहार निर्धारित किए जाते हैं।

इस प्रक्रिया के माध्यम से, कंपनी अपने स्टॉक को सार्वजनिक बनाकर नए पूंजी स्रोतों का द्वार खोलती है और निवेशकों को निवेश करने का मौका प्रदान करती है। यह वित्तीय बाजार में प्रतिस्थापन का महत्वपूर्ण प्रक्रिया है और कंपनी के विकास को गति प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण होती है।

पहला इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग किसने लॉन्च किया?

निश्चित रूप से! आइए डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा शुरू की गई पहली आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) के इतिहास और महत्व के बारे में गहराई से जानें।

पृष्ठभूमि:

डच ईस्ट इंडिया कंपनी, जिसे वेरीनिगडे ओस्टिनडिशे कॉम्पैनी (वीओसी) के नाम से भी जाना जाता है, की स्थापना 1602 में नीदरलैंड में हुई थी। यह व्यापार पर ध्यान केंद्रित करने वाले शुरुआती बहुराष्ट्रीय निगमों में से एक था, विशेष रूप से ईस्ट इंडीज (वर्तमान इंडोनेशिया) के साथ आकर्षक मसाला व्यापार में। कंपनी ने अन्वेषण के युग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान वैश्विक व्यापार पर हावी रही।

पहला आईपीओ:

1602 में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने आईपीओ के माध्यम से जनता को शेयर जारी करने वाली पहली कंपनी बनकर इतिहास रच दिया। इससे पहले, कंपनी एक निजी उद्यम के रूप में काम करती थी, लेकिन सार्वजनिक होकर, इसने निवेशकों के एक व्यापक समूह को स्वामित्व के शेयरों की पेशकश की। इस आईपीओ ने आधुनिक पूंजीवाद के विकास और शेयर बाजार के जन्म में एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित किया जैसा कि हम आज जानते हैं।

महत्व:

पूंजी तक पहुंच: आईपीओ ने डच ईस्ट इंडिया कंपनी को निवेशकों से महत्वपूर्ण पूंजी जुटाने की अनुमति दी, जिससे वह अपनी महत्वाकांक्षी यात्राओं और व्यापार उद्यमों को वित्तपोषित करने में सक्षम हो गई। पूंजी के इस प्रवाह ने कंपनी के संचालन के विस्तार को सुविधाजनक बनाया और इसके आर्थिक प्रभाव को बढ़ाया।

व्यापक स्वामित्व: जनता को शेयरों की पेशकश करके, डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्वामित्व का लोकतंत्रीकरण किया, जिससे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को अपने उद्यमों में निवेश करने की अनुमति मिली। इस विस्तृत स्वामित्व संरचना ने आधुनिक शेयर बाजार की नींव रखी, जहां कोई भी इक्विटी स्वामित्व में भाग ले सकता है।

जोखिम साझा करना: आईपीओ के माध्यम से, समुद्री व्यापार और अन्वेषण से जुड़े जोखिमों को शेयरधारकों के एक बड़े समूह के बीच वितरित किया गया था। इससे व्यक्तिगत निवेशकों पर वित्तीय बोझ कम हुआ और अधिक लोगों को कंपनी में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, जिससे जोखिम और संभावित लाभ दोनों फैल गए।

कॉर्पोरेट प्रशासन: सार्वजनिक होने के कारण डच ईस्ट इंडिया कंपनी के भीतर औपचारिक कॉर्पोरेट प्रशासन संरचनाओं की स्थापना की आवश्यकता हुई। इसमें विनियमों, जवाबदेही तंत्र और शेयरधारक अधिकारों का विकास, कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं के लिए प्रारंभिक मिसाल कायम करना शामिल था।

परंपरा:

डच ईस्ट इंडिया कंपनी के आईपीओ ने आधुनिक वित्तीय बाजारों की नींव रखी और व्यापार और वाणिज्य की प्रकृति को बदल दिया। इसने आर्थिक विकास, नवाचार और वैश्वीकरण को बढ़ावा देने के लिए पूंजी बाजार की शक्ति का उदाहरण दिया। इस ऐतिहासिक आईपीओ द्वारा स्थापित सिद्धांत आज भी कॉर्पोरेट वित्त और निवेश की गतिशीलता को आकार दे रहे हैं।

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कितने प्रकार के होते हैं?


इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) कई प्रकार की हो सकती हैं, जिनमें मुख्यतः निम्नलिखित शामिल होते हैं:

  1. मुख्य IPO (Main IPO): यह वह IPO होती है जिसमें किसी कंपनी के मुख्य स्टॉक का विपणन किया जाता है। इस प्रकार की IPO में कंपनी के मुख्य स्टॉक का एक बड़ा हिस्सा सार्वजनिक बाजार में लाया जाता है।
  2. फ्रेश आईपीओ (Fresh IPO): इस प्रकार की IPO में, कंपनी नई पूंजी जुटाने के लिए शेयरों का बिक्री करती है। यह पैसा कंपनी की विकास योजनाओं, विभागीय विस्तार या ऋणों का भुगतान के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
  3. एक्सिस्टिंग आईपीओ (Existing IPO): इस प्रकार की IPO में, पहले से मौजूदा स्टॉकहोल्डर अपने हिस्सेदारी का बिक्री करते हैं। इससे कंपनी को कोई नई पूंजी नहीं मिलती है, लेकिन वे स्टॉकहोल्डर पूर्वाधिकारों से पूंजी प्राप्त कर सकते हैं।
  4. ओवरसब्स्क्रिप्शन (Over-Subscription) IPO: इस प्रकार की IPO में, कंपनी के अधिक शेयरों की मांग होती है जो पहले से ही निर्धारित की गई है। इस स्थिति में, निवेशकों को अधिक शेयरों की मांग को पूरा करने के लिए भविष्य में कमीशन के साथ अतिरिक्त शेयरों का बिक्री किया जाता है।
  5. ग्रीनशू (Green Shoe) IPO: इस प्रकार की IPO में, ग्रीनशू ऑप्शन के तहत ग्रीनशू संविदा होता है, जिसके अनुसार ग्रीनशू संस्थान को IPO के पहले अधिक शेयरों का बिक्री करने का अधिकार होता है। यह उन घटकों को संतुष्ट करने के लिए होता है जो IPO की मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त शेयरों की आवश्यकता हो सकती है।

ये कुछ प्रमुख तरीके हैं जिनमें इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) की विविधता देखी जा सकती है। इन विभिन्न प्रकारों का उपयोग कंपनी की आवश्यकताओं और वित्तीय योजनाओं के आधार पर किया जाता है।

भारत का सबसे बड़ा इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग क्या है?

भारत का सबसे बड़ा इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) तकनीकी जानकारी के हिसाब से बदलता रहता है, क्योंकि इसमें अनेक प्रमुख मापदंड होते हैं, जैसे कि उठाया गया पूंजी, वित्तीय संदर्भ, और अन्य कारक। लेकिन, एक ऐसा IPO जो विस्तृत रूप से चर्चा में आया था, वह था रिलायंस इंडस्ट्रीज का IPO, जो 2008 में लॉन्च किया गया था।

रिलायंस इंडस्ट्रीज के IPO में उठाए गए पूंजी की मात्रा बहुत अधिक थी और यह कार्यक्रम भारतीय वित्तीय बाजार में एक बड़ी क्रांति का कारण बना। इस IPO के माध्यम से, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने करीब 11,500 करोड़ रुपये की पूंजी उठाई थी।

यह IPO भारतीय वित्तीय बाजार में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण घटना थी और इसने भारतीय शेयर बाजार की गति को तेजी से बढ़ाया। इसके अलावा, रिलायंस इंडस्ट्रीज के IPO के माध्यम से भारतीय निवेशकों को विश्वसनीय और बड़े प्रोजेक्ट्स में निवेश करने का अवसर मिला।

अब तक, यह रिलायंस इंडस्ट्रीज का IPO भारत का सबसे बड़ा इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग है, जिसके बाद भी अन्य कंपनियों ने भी बड़े IPO लॉन्च किए हैं और विभिन्न विभागों में आकर्षक पूंजी उठाई है।

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कैसे फैलता है?


इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) का फैलाव एक चरणबद्ध प्रक्रिया होता है जो निम्नलिखित चरणों में समाप्त होती है:

  1. इनिशियल तैयारी (Initial Preparation): कंपनी अपने IPO के लिए तैयारी शुरू करती है। इस चरण में, कंपनी को अपने वित्तीय और कानूनी दस्तावेज़ों की तैयारी करनी पड़ती है, जैसे कि आर्थिक विवरण, अधिकारी विवरण, आधिकारिक प्रस्तावना (Prospectus) आदि।
  2. रिज़र्वेशन का प्रक्रिया (Reservation Process): IPO के लिए निर्धारित समयानुसार, निवेशकों को शेयरों के लिए आवेदन करने का अवसर दिया जाता है। इसके लिए, निवेशकों को आवेदन पत्र भरकर दाए गए निर्देशों के अनुसार शेयरों के लिए पूंजी जमा करनी पड़ती है।
  3. शेयरों की वितरण (Allocation of Shares): IPO के लिए आवेदन करने वाले निवेशकों के बीच में शेयरों का वितरण किया जाता है। इसमें, नियुक्ति और प्रक्रिया के अनुसार शेयरों का आवंटन किया जाता है।
  4. प्राइस फिक्सिंग (Price Fixing): इस चरण में, IPO के लिए शेयरों की कीमत निर्धारित की जाती है। यह कीमत बाजार में बहुत सोची समझी प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित की जाती है।
  5. शेयरों की खुलासा (Share Listing): IPO के दिन, शेयरों को सार्वजनिक बाजार में उपलब्ध किया जाता है। इसमें, निवेशकों को शेयरों को खरीदने या बेचने का अधिकार प्राप्त होता है।
  6. ट्रेडिंग (Trading): IPO के बाद, शेयरों का ट्रेडिंग शुरू होता है और वे बाजार में लिस्ट होते हैं। इसके बाद, निवेशक अपने अनुसार शेयरों को खरीदने या बेचने का निर्णय लेते हैं।

इस प्रकार, इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) का फैलाव उपरोक्त चरणों के माध्यम से होता है, जो शेयर बाजार में नई कंपनियों को अपने स्टॉक को सार्वजनिक बनाने की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।

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